

विभाजन की वजह से पहचान का संकट गंभीर हुआ और बढ़ता चला गया। जो बाद में 1947 के पूर्वी पाकिस्तान और मौजूदा बांग्लादेश तक फ़ैल गया। 1971 में हुए युद्ध के बाद मिली आजादी से ही बांग्लादेश बना था। इससे पहले तक बांग्लादेश भारत की तरह ही एक धर्मनिरपेक्ष देश था। लेकिन वहां बढ़ रहे इस्लामिक कट्टरवाद को लेकर वो आलोचना के दायरे में था।
इस्लामिक और धर्मनिरपेक्ष लोगों के बीच तनाव बढ़ रहा है। इसमें चिंगारी तब और भड़की जब लगातार चल रही सुनवाई के बाद 1971 युद्ध के दौरान हुए अपराधों के पांच आरोपी इस्लामिक राजनेताओं को फांसी दी गई। विभाजन के बाद विध्वंसक धार्मिक हिंसा की शुरुआत हुई थी। इन्हीं वजहों से भारत-पाकिस्तान संबंधों में शत्रुता बढ़ती रही। इसी के चलते अब तक चार युद्ध भी हो चुके हैं। दोनों देशों में बड़े बड़े धार्मिक नेता, मीडिया और सरकारें नफरत और शत्रुता का प्रचार करती हैं। इन सभी बातों से भी ज्यादा, विभाजन ने भारत और पाकिस्तान को हमेशा के लिए पहचान का संकट दिया है। दोनों देश धर्म के महत्व को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। मुहम्मद अली जिन्ना ने एक बार इस्लामिक राज्य के तौर पर गठित पाकिस्तान को लेकर कहा था कि ये देश धार्मिक सहिष्णुता और अनेकता को आश्रय देने वाला देश है। हालांकि बाद में नेताओं ने देश का इस्लामीकरण कर दिया। जिससे कट्टरपंथियों को मजबूत होने का मौका मिला और आज पाकिस्तान के लिए वही समस्या बन चुके हैं। अफसोस इस बात का है कि सबसे ज्यादा हिंसा का शिकार वे अल्पसंख्यक हैं, जिन्होंने दशकों पहले विभाजन के बाद भी वहां रहने का हिम्मत भरा फैसला किया था।