पहली महत्वपूर्ण घटना: विभाजन के दौरान मारे गए सिखों, हिंदुओं, मुस्लिमों के लिए अकाल तख्त की प्रार्थना सभाएं

1947 में भारत पाकिस्तान के विभाजन में पंजाब के करीब 10 लाख पुरूष, महिलाएं और बच्चे मारे गए थे। इस बात का जिक्र सिखों के सबसे पवित्र अकाल तख्त साहिब की तरफ से सोमवार को जारी पोस्टर में था।

विभाजन के 75 साल पर अकाल तख्त 16 अगस्त को एक सामूहिक प्रार्थना सभा का आयोजन करेगी। इस प्रार्थना सभा का उद्देश्य 1947 में बंटवारे के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा को शांति देना होगा।

1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन में पंजाब के करीब 10 लाख पुरूष, महिलाएं और बच्चे मारे गए थे। 16 अगस्त को इन सभी की आत्मा की शांति के लिए सामूहिक प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाएगा। इस बात का जिक्र पवित्र अकाल तख्त साहिब की तरफ से सोमवार को जारी पोस्टर में था।

सिख कार्यकर्ता परमपाल सिंह ने कहा- “अकाल तख्त ने दुनिया भर में मौजूद गुरूद्वाराओं को ये निर्देश दिया है कि वे इस सप्ताह इस तरह की प्रार्थना सभाएं आयोजित करें। गुरूद्वाराएं विभाजन में मारे गए लोगों की याद में इस कार्यक्रम का आयोजन अपनी सहूलियत के अनुसार कर सकती हैं। इन प्रार्थना सभाओं का समापन 16 अगस्त को अकाल तख्त पर होगा। हिंदू और मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि भी इस प्रार्थना सभाओं का हिस्सा होंगे।

विभाजन के 70 साल जब पूरे हुए थे तब 'आलमी पंजाबी संगत’ ने विभाजन की त्रासदी झेलने वालों के लिए प्रार्थना सभाएं की थीं।

आलमी पंजाबी संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक गंगवीर राठौर ने कहा था कि अकाल तख्त की प्रार्थना सभाएं विभाजन के दर्द और उससे पैदा हुई समस्याओं को समझने की दिशा में बहुत बड़ा कदम हैं।

नवांशहर के करीब राहोन के एक हिंदू परिवार से आने वाले गंगवीर राठौर ने कहा- "अकाल तख्त जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने विभाजन के दंश को बहुत गहराई से समझा। इसीलिए जब हमने उनसे इन प्रार्थना सभाओं के आयोजन की गुजारिश की तो वे न सिर्फ इसके लिए तैयार हो गए बल्कि उन्होंने अकाल तख्त में इस प्रार्थना सभा के आयोजन की रूपरेखा तैयार की"।

उन्होंने कहा, "व्यक्तिगत तौर पर मैं विभाजन का शिकार नहीं हूं। विभाजन के दौरान मेरे परिवार से किसी को भी विस्थापित नहीं होना पड़ा। लेकिन राहोन में हिंदू, मुसलमान और सिखों के 1947 से पहले एक साथ रहने के तमाम साक्ष्य मैंने देखे हैं। राहोन को देखकर विभाजन की त्रासदी को समझने की मेरी समझ बढ़ी। मुझे लगता है कि हर एक सिख परिवार इस विभाजन से अब तक प्रभावित है, चाहे उसका परिवार विस्थापित हुआ या नहीं"।

विभाजन भारत और पाकिस्तान के इतिहास का सबसे बड़ा धब्बा है। उस वक्त का नेतृत्व धर्म के आधार पर देश के विभाजन के दूरगामी प्रभाव को समझने में पूरी तरह नाकाम रहा। दोनों ही तरफ के नेताओं ने विभाजन के बाद अपने लिए बड़े बड़े पद हासिल कर लिए लेकिन पंजाब के लाखों हिंदू, मुसलमान और सिख मारे गए। उसमें से कई ऐसे भी थे जिन्हें अंतिम संंस्कार तक नसीब नहीं हुआ। पंजाब की मौजूदा समस्या का मूल भी दो राष्ट्र का यही सिद्धांत है।

उन्होंने कहा, “ विभाजन की कहानी अब भी अनसुलझी है। हम आज भी विभाजन की त्रासदी को झेल रहे हैं। आज हम जिसे सरहद कहते हैं वह विभाजन के पहले पंजाब का सबसे समृद्ध इलाका था। आज ये सरहद तस्करी के लिए बदनाम है। भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सुचारू व्यापार की इजाजत नहीं देते, जिसका आर्थिक असर दोनों तरफ के पंजाब पर पड़ रहा है। पंजाब के पश्चिमी इलाके में पंजाबी भाषा पर उर्दू भारी हो गई और पंजाब के पूर्वी हिस्से में पंजाबी भाषा पर हिंदी का आधिपत्य हो गया। इन सभी बातों की बुनियाद देश के विभाजन में है।

उन्होंने ये भी कहाकि- विभाजन का सबसे ज्यादा नुकसान सिखों को हुआ। सिख किसानों की खेती लायक जमीन चली गई। ये नुकसान सिर्फ आर्थिक नहीं था बल्कि धार्मिक भी था। विभाजन की वजह से सिखों के कई धार्मिक स्थल भी पाकिस्तान में चले गए। हमें विभाजन का दर्द झेलने वाले हिंदू और मुसलमान दोनों के प्रति सहानुभूति है। इसीलिए हमने सभी पीड़ियों के लिए प्रार्थना सभा के आयोजन का फैसला किया। अखंड पाठ का आयोजन 14 अगस्त को शुरू होगा और 16 अगस्त को खत्म होगा।

 

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