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भारत का विभाजन 1947

जब अगस्त 1947 में भारत में ब्रिटिश राज खत्म हुआ तब भारत का विभाजन दो स्वतंत्र देशों में हुआ: भारत और पाकिस्तान। भारत के विभाजन से लाखों परिवार उजड़ गए। समाज में दंगे हुए, अशांति रही। हिंसा, कटुता, बलात्कार, नरसंहार, लूटपाट, भुखमरी सबकुछ देखना पड़ा। मानवता के इतिहास में मजबूरन हुए सबसे बड़े पलायन की गवाह पूरी दुनिया बनी। लाखों लोगों को असीमित नुकसान उठाना पड़ा, डरावने दिन रात का सामना करना पड़ा। पंजाब और बंगाल प्रांतों में विनाशकारी दंगे हुए। जिसकी वजह से हजारों लोगों की जान गई। लाखों लोगों के जेहन में कभी न भुलाई जाने वाली कड़वी यादें दर्ज हो गईं। विभाजन की त्रासदी और उसका दर्द आज भी महसूस किया जाता है। आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के तहत भारत अपनी आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (नई दिल्ली) विभाजन की पृष्ठभूमि को याद करते ह्ए सेमिनार, व्याख्यानमाला, प्रदर्शनी, फिल्मों की स्क्रीनिंग जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। इसका मकसद विभाजन की त्रासदी और उसके संघर्षों को झेलने वाली जिंदगियों को याद करना और उन्हें श्रद्दांजलि देना है। 

"मुझे बंटवारे का दर्द अच्छी तरह याद है। पूरी दिल्ली ने शरणार्थियों के संघर्ष को देख रही थी। हम रोशनआरा बाग के पास रूके थे। पूरा शहर किसी शरणार्थी शिविर में तब्दील हो गया था।"

- गुलजार

विभाजन के बाद दो देशों का निर्माण हुआ, मुस्लिम बाहुल्य वाला पाकिस्तान और हिंदू बाहुल्य वाला भारत। बंगाल और पंजाब प्रांत का विभाजन धार्मिक आधार पर किया गया, इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि हर जगह हिंदू और मुसलमान एक ही समाज का हिस्सा थे।

भारत का विभाजन 1947

19वीं शताब्दी की शुरूआत में ही ब्रिटिश हूकूमत के साथ साथ विद्वानों, राजनेताओं और तमाम पक्षकारों को भी समझ आ गया था भारत की आजादी को और टाला नहीं जा सकता है। बावजूद इसके विभाजन के तौर पर जो हुआ वो जबरन देश निकाला था, बेगुनाहों का नरसंहार था, एक ऐसी आपदा थी जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। आखिर धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का जिम्मेदार कौन था? वह भी तब जब इस बात की मिसाल थी, हर कोई जानता था कि भारत में सिर्फ हिंदू मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी धर्म के लोग सामाजिक सौहार्द्य के साथ आपस में मिलजुल कर रहते थे।

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