टूटते परिवार और विस्थापित लोग

दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश हुकूमत के औपनिवेशवाद के ख़त्म होने की प्रक्रिया होने वाले बहुत से विभाजनों में से एक था भारत और पाकिस्तान का विभाजन । भारत में ब्रिटिश राज्य का पहला बड़ा विभाजन 1937 में हुआ था जब बर्मा उससे अलग हुआ था। उस वक्त बर्मा में स्थानीय लोगों ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर मांग उठाई थी और भारत से आने वाले विस्थापितों को रोकने की बात कही थी।

1948 आते आते विस्थापन अपने अंत की तरफ था, लगभग डेढ़ करोड़ अपनी जगह से उजड़ गए थे। दस से बीस लाख लोगों अपनी जान गंवा चुके थे। मृतकों को लेकर जो आंकड़े आ रहे थे वे असली संख्या से अलग थे। भारतीय उपमहाद्वीप की जो आधुनिक पहचान है, विभाजन उसके केंद्र में है। ठीक उसी तरह जैसे यहूदियों की बलि दी गई थी। जब उन्हें जिंदा जला दिया गया था। वैसे ही विभाजन ने इस इलाके के लोगों की सोच समझ पर गहरी छाप छोड़़ी क्योंकि विभाजन के समय जिस तरह की हिंसा हुई थी वो अकल्पनीय और अप्रत्याशित थी। 

 पाकिस्तान की जानी मानी इतिहासकार आयशा जलाल ने विभाजन के लिए कहा था- “ विभाजन बीसवीं शताब्दी में दक्षिण एशिया की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी। उन्होंने लिखा- विभाजन यानि एक ऐसा परिभाषित करने वाला लम्हा, जिसकी शुरुआत थी न अंत। वह एक ऐसा लम्हा था जो उपनिवेशवाद खत्म होने के बाद आज भी इस बात पर असर डालता है कि दक्षिण एशिया में लोग और राज्य कैसे बीते कल, वर्तमान और भविष्य का सामना करते हैं।

हाशिम जैदी, जिनका परिवार भारत छोड़कर पाकिस्तान गया, उनके चाचा ने एक हिंदू की हत्या की थी उन्हें इसके बुरे अंजाम का डर था

हाशिम जैदी और उनका परिवार अगर अपने पैतृक शहर इलाहाबाद न चला गया होता तो दंगाई उन्हें छोड़ने वाले नहीं थे। उनके चाचा एक मुस्लिम पुलिस ऑफिसर थे। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने एक हिंदू दंगाई की हत्या की थी जब वह उनके घर में घुसने की कोशिश कर रहा था। बदला लेने के हिंसक तरीके 1947 तक आम बात थी। इसी डर से जैदी का परिवार किसी तरह का जोखिम नहीं ले सकता था। वे कहते है- हमारे पास हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान जाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं था। दंगाई लगातार हिंसक हमले कर रहे थे। सिर्फ 10 या 11 साल की उम्र के हाशिम जैदी को उस वक्त ट्रेन से पाकिस्तान ले जाया गया था। सवारी गाडियों पर इस बात का उल्लेख था कि कौन से यात्री पैसा या कोई और कीमती सामान साथ ले जा रहे हैं और कौन कुछ नहीं।

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