

द एसोसिएशन फॉर कॉम्यूनल हारमनी इन एशिया (ACHA) का गठन अमेरिका में 1993 में हुआ था। इस संस्था ने 1947 में हुए हिंदू-मुसलमान दंगे के पीड़ितों के प्रति संवेदना और खेद व्यक्त करने का अभियान शुरू किया।
1 अगस्त को शुरू की गई इस याचिका पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले सैकड़ो लोगों ने दस्तखत किया है। ये मुहिम इस साल के अंत तक चलेगी। द एसोसिएशन फॉर कॉम्यूनल हारमनी इन एशिया में भारत, पाकिस्तान के साथ साथ बांग्लादेश सदस्य भी शामिल हैं।
सैकड़ों साल तक चले ब्रिटिश राज से आजादी मिलने के बाद धार्मिक आधार पर भारत का दो हिस्सों में विभाजन हुआ। इसी विभाजन में मुस्लिम बाहुल्य पाकिस्तान का गठन हुआ था। बाद में पाकिस्तान के विभाजन से बांग्लादेश बना।
इस याचिका में इस बात का उल्लेख था कि सांप्रदायिक हिंसा के उन्माद में करीब डेढ़ करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। लाखों लोगों की जान चली गई। विभाजन के पीड़ित सामूहिक हत्या, बलात्कार, लूटमार जैसी घटनाओं की दर्दनाक यादों को कभी भुल नहीं सकते थे।
75 साल बीत जाने के बाद भी विभाजन के घाव ताजा हैं। मजबूरन हुए विस्थापन की यादों के साथ जीना अब भी मुश्किल है। इन घावों का भरना इसलिए और ज्यादा मुश्किल हो रहा था क्योंकि इस अपराध के पीड़ित और अपराधी एक ही थे।
द एसोसिएशन फॉर कॉम्यूनल हारमनी इन एशिया के कार्यकारी निदेशक प्रीतम के रोहिला कहते हैं- 1947 का विभाजन भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास का सबसे काला अध्याय है।
विभाजन की विभीषिका के चश्मदीद रहे रोहिला महसूस करते हैं इस त्रासदी की दर्दनाक यादों से उबरने की शुरूआत तब होगी जब कोई इसकी जिम्मेदारी लेगा लेकिन अब तक 1947 में हुए जघन्य अपराधों की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है।