महिलाओं पर विभाजन का असर

14 अगस्त, यानि भारत की आजादी की पूर्व संध्या और वो दिन जब पाकिस्तान अधिकारिक तौर पर अस्तित्व में आया। इस तारीख के साथ उन लाखों लोगों की यादें जुड़ी हैं जिन्होंने इसकी भयावहता को झेला। जिसका असर दशकों तक देखने को मिला। विभाजन के दौरान महिलाओं को खास तौर पर क्रूर हिंसा का शिकार होना पड़ा। वैसे तो विभाजन अपने साथ तमाम अनिश्चितताएं लेकर आया था। लेकिन इन अनिश्चितताओं में भी हिंसा, दर्द, तनाव, हंगामा, अव्यवस्था, अफरा-तफरी जैसी बातें निश्चित थीं। इतिहास में ये वक्त महिलाओं के प्रति हिंसा का गवाह है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने वालों में उनके घर के ही पुरूष थे या फिर दूसरे धर्म के लोग। महिलाओं को अपहरण, बलात्कार और सार्वजनिक अपमान का शिकार होना पड़ा। उनके जननांगों को विकृत कर दिया गया। परिवार के सम्मान के नाम पर महिलाओं की हत्या कर दी गई। कई महिलाओं को शुचिता के नाम पर आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया।

कमला भसीन और रीतु मेनन अपनी किताब 'बॉर्डर एंड बाउंड्रीज: वूमेन इन इंडिया पार्टीशन' में लिखती हैं- विभाजन के बाद पाकिस्तान जाने वाली 50,000 महिलाओं को अगवा किया गया। जबकि भारत आ रही करीब 33000 महिलाओं का अपहरण किया गया था। उवर्शी बूटालिया ने अपनी किताब 'द अदर साइड ऑफ साइलेंस’ में इसी तरह के आंकड़ों का जिक्र किया है। उनका दावा है कि सरहद के दोनों तरफ से 75000 महिलाओं को अगवा किया गया। हालांकि ऐसा माना जाता है कि अगवा की गई महिलाओं की सही संख्या इससे अलग होगी क्योंकि उस वक्त की अफरातफरी और हंगामे में बहुत सारे ऐसे मामलों पर किसी का ध्यान नहीं गया और वे दर्ज ही नहीं हुए।

hi_INHindi